एम्स/अस्पताल किसी जाति,धर्म,वर्ण या समुदय विशेष के लिए नहीं खुलता......
ये तो सिर्फ और सिर्फ मानवता की रक्षा के लिए खोला जाता है तथा गरीबों को और गरीब बनने से रोकने के लिए खोला जाता है।
इस दुनियां में आजतक कोई ऐसा मनुष्य पैदा नहीं लिया, जिन्होने अपने मानव शारीर का परित्याग न किया हो, अर्थात सबों को जन्म के बाद मृत्यु को धारण करना पड़ा है और आगे भी यही करना पड़ेगा.....
चाहे वो किसी भी धर्म,जाति, वर्ण,वर्ग और समुदाय विशेष का क्यों न हो।
यहाँ तककि मानव शरीर को धारण करनेवाले सभी भगवान, मोहमद साहब,गुरुनानक साहब,भगवान महावीर,भगवान बुद्ध तथा ईशा मसीह, सबों को अपने शारीर का त्यागना पड़ा था।
अस्पताल ही पूरी दुनिया में सच्चे मायने में मानवता का ऐसा मंदिर है जहाँ एक ही छत के निचे अल्लाह,ईश्वर,गॉड और वाहेगुरु सभी विराजते हैं,वरना हमने तो उपरवालों को भी बाँटने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
हम सभी मानते हैं कि उपरवाला एक है जिन्होने पुरे दुनियां को बनाया,और उस ऊपर वाले को हम अलग-अलग भाषा में कोई अल्लाह,तो कोई ईश्वर, तो कोई वाहेगुरु, तो कोई गॉड कहते हैं, ठीक वैसे ही जैसे की पानी को कोई जल,तो कोई नीर,तो कोई वाटर कहते है जो की सिर्फ भाषाई भेद है इससे पानी की वास्तविक संरचना H2O नहीं बदल जाता ठीक वैसे ही अल्लाह,ईश्वर,गॉड और वाहेगुरु एक भाषाई भेद है।
भगवान धन्वंतरि अर्थात इस दुनियां के पहले चिकत्सक (जिनकी आज भी कोई जाती और धर्म नहीं होती) का जब इस पृथ्वी पर पदार्पण हुआ था तो इस दुनियां में ना तो कोई जाति थी और न ही मानवता के अलावा कोई धर्म,हम सब भारतीय थे और आज हम सभी भारतियों को उनके सम्मान में और अपनी जीवन की रक्षा तथा अपने आपको गरीबी से बचाने हेतु जाति-धर्म के बंधन से ऊपर उठकर उनके जन्मस्थली काशी में उनके मंदिर अर्थात एम्स काशी के निर्माण के लिए संघर्ष करनी चाहिए।
काशी और भारतीय संस्कृति का सभी जनप्रतिनिधि करें सम्मान,
जल्द-से जल्द शुरू कराएं एम्स काशी का निर्माण!
काशी मांगे एम्स!
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