Tuesday, September 15, 2015

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आखिर क्यों चाहता हूँ मैं काशी में एम्स


आखिर क्यों चाहता हूँ मैं काशी में एम्स???????
मित्रो आपके और हमारे जीवन में कभी-कभी ऐसी घटना घट जाया करती है जो हमें और आपको ये मानने को बाध्य कर देते हैं कि इस दुनियां में सब कुछ हमारे बस में नहीं है??
आज फिर ऐसी ही एक घटना मेरे जीवन में घटी जिसको मैं आप सबों से शेयर करना चाहता हूँ।
दोपहर के लगभग 1 बज रहे होंगे बाहर चिल-चिलाती धुप थी।मैं अपने कैथ लैब में बैठा था कि अचानक से मेरे मन में ये ख्याल आया कि चलकर अपने वार्ड का राउंड लेता हूँ।मैं वहां से उठकर राउंड लेने जैसे ही CCU के गेट के पास पहुंचा तो दूर से देखा की एक व्यक्ति CCU के गेट पर स्टेचर पर पड़ा छटपटा रहा है।मैं भागकर उनके पास पहुंचा तो देखा कि वो कोई और नहीं बल्कि IMS BHU में मानसिक रोग विभाग में काम करने वाले मेरे हीे एक चिकित्सक मित्र हैं। जैसे ही उनकी नज़र मेरे नजरों से मिली उनके आँखों में एक चमक सी दौर गयी।आँखों में छाये मौत के डर के बीच एक गजब सा अंदर से आत्मविश्वास उनके चेहरे पर मुझे दिखा और बुद् बदाते हुए बरबस ही उनके मुँह से ये आवाज़ निकली कि अब तुम आ गए हो तो मैं जरूर बच जाऊंगा।
उनको मैंने आँखों ही आँखों में विस्वास दिलाया, जी जरूर!
मेरे ऊपर उनके द्वारा दिखाए गए ये विश्वास जहाँ एक तरफ तो अतिआनन्ददयाक था परंतु दूसरे तरफ एक कठिन चुनौती भी।
फिर मैं उनके गंभीर हालात को पढ़ते हुए खुद ही स्टेचर खिचता CCU के अंदर ले गया और खली पड़े एक बिस्तर पर लिटा दिया। संयोग की बात ये थी की मेरा CCU में काम करनेवाला ECG टेकनिशियन कहीं बुलावे पर दूसरे वार्ड में ECG करने गया हुआ था और ECG मॉनिटर में सारे लीड नहीं आ रहे थे। इसलिए मैंने ECHO मशीन मंगवाया हार्ट अटैक को साबित करने के लिए ताकि खून के थक्के को घुलानेवाली दावा शुरू की जा सके । तब तक मैंने अपने स्टाफ सिस्टर्स को कुछ इमरजेंसी दावा खिलाने के निर्देश दे दिया था। अभी दो चार मिनट ही बीते होंगे कि अचानक से उनके ह्रदय ने काम करना बंद कर दिया।
उनके ह्रदय गति वापिस करने के लिए हमने उनको बिजली के तीन बड़े बड़े झटके दिए और उनके सीने पर थम्प तथा दवाब देना शुरू कर दिया।कुछ देर दवाब देने के बाद जाकर कहीं उनकी ह्रदय की गति पुनः आरम्भ हो पायी।
फिर मैंने बाँकी की बची दवाएं भी अपने स्टाफ सिस्टर्स को लगाने का निर्देश दे दिया।अभी फिर कुछ ही समय बीते होंगे कि उनकी ह्रदय गति पुनः रुक गयी।जिनके लिए पुनः हमने बिजली के झटके देने के साथ साथ उनके सीने को दबाना शुरू कर दिया। कुछ देर तक दवाव देने के तत्पश्चात उनकी ह्रदय गति पुनः सुचारू रूप से शुरू हो पायी।
3 घंटे तक चले जीवन मृत्यु की इस मैराथन महाजंग में आखिरकार हमारी विजय हुई और हमने अपने मित्र को दूसरा जन्म लेने में सहायता प्रदान की।
मेरे ये मित्र आज किस्मत के धनी साबित हुए कि आज की सारी घटनायें मेरे 14 महीने के बनवास से आने के बाद घटी परंतु उन हज़ारों भाई बहनो के जान का क्या जो मेरे 14 महीने के बनवास के दौरान गयी???
कौन हैं उनके मौत के असली जिम्मेदार????
मेरे ये मित्र ,उन्ही मित्रगणों में से एक थे जो आज से 16 महीने पहले मुझे एम्स की लड़ाई के मैदान में धोखा देकर और अकेले छोड़कर भाग खड़े हुए थे और मेरे निलंबित होने और बने रहने में भी अहम् भूमिका निभायी थी।
आज इनकी बारी थी कल किसी और की भी हो सकती?
ऐसी कोई अप्रिय घटना कही हमारे वाईस चांसलर ,डायरेक्टर अथवा प्रधानमंत्री महोदय के साथ न घट जाये इसलिए तो मैं आज भी यहाँ एम्स की स्थापना के लिए मुखर होकर (अपने होने वाले नुकसानों को नज़र अंदाज़ करके) अपनी बातों को रखता रहता हूँ!
उपरोक्त बातों को सभी मित्रों को समझने की अत्यंत ही आवश्यकता है वरना आनेवाली पीढ़ी कभी हमें हमारे इस गलती के लिए माफ़ नहीं करेंगे।
काशी मांगे एम्स!
एम्स से कम कुछ भी मंजूर नहीं।

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